तर्कशील आन्दोलन की चुनौतियाँ
विभिन्न परिस्थितियों से गुजरता तर्कशील आन्दोलन आज इस पड़ाव पर पहुँच चुका है कि वह किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा है। अपने सामाजिक जागरुकता के कार्यक्रमों से समाज में यह अपनी पहचान बनाने में सफल रहा है, वे लोग जो वैचारिक तौर पर तर्कशीलता का समर्थन नहीं करते वे भी कहीं न कहीं इसके कार्यो में ”हां“ मे सिर हिलाते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ट भूमि में बहुत दूर तक न जा कर, डाक्टर अब्राहम थामस काव्वूर के चुनौतीपूर्ण अभियान से हम इसे योजना बद कार्य करने के रूप में देखते हैं, जिसकी परिणति पंजाब-हरियाणा क्षेत्र में 1985-86 के काल खण्ड़ में हुई, जब विश्व प्रसिध पुस्तक ‘बीगोन गोड मेन’ का हिन्दी व पंजाबी संस्करण छप कर आया आज तर्कशीलता को बल देता अमूल्य साहित्य उपलब्ध है। जन नाट्यकार गुरशरण सिंह तर्कशीलता के महत्व को अक्सर अपने वकतव्य में स्थान देते थे।
आतंकवाद के काले दौर में पंजाब में तर्कशीलता का परचम लहराया, यह वह दौर था, जिसमें विचार भिन्नता की कीमत जान देकर चुकाई जाती थी यह दौर खत्म हुआ और गली-मुहल्ले में छुटभैया बाबाओं, तांत्रिकों के साथ ही सशक्त उपस्थिति रखने वाले बाबाओं से भी आन्दोलन को मुकाबला करना पड़ा, साम्प्रदायिकता की राजनीति करने वालों से भी पाला पड़ा, अनेक साथियों ने शारीरिक हमले झेले, मुक्द्दमें बाजी में उलझे, झड़पें हुई और साम्प्रदायिकता के समर्थन में बने कानूनों से भी उलझना पड़ा। जो कि अभी भी निर्विघ्न जारी है और आन्दोलन वैज्ञानिक चेतना के अपने प्रचार-प्रसार के कार्यक्रम में अडि़गता से आगे बढ़ रहा है।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रेशनलिस्ट मूवमेन्ट की आपसी एकता से यह मजबूती से खड़ा हो रहा है। डा.अब्राहम थामस काव्वूर, बी.प्रेमानन्द के बाद अब एक सशक्त नेतृत्व डा. नरेन्द्र नायक के आने से मिला है, देश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय अनुभवी नेतृत्व सक्रियता से इसमें भागीदारी कर आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है, जो कि आने वाले समय में बेहद मजबूती से आगे बढ़ कर चुनौतियों का सामना करेगा।
अगर हम चुनौतियों के रूप में देखें तो साम्प्रदायिकता से सबसे बड़ा टकराव होने के आसार हैं मुख्यतः जिनकी राजनीति इसी पर चलती है इसके अतिरिक्त मौजूदा कानूनों में आर्टीकल 295ए एवं आई.टी.सी.एक्ट की धारा 66 का दुरुपयोग भी आन्दोलन की सक्रियता को रोकने के लिए हो सकता है। जहां जमीनी स्त्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है वहीं कानूनी सलाहकारों का राष्ट्रीय स्तर का एक पैनल बनाए जाने की भी जरूरत है, साथ ही संचार साधनों की तेजी से बनती सक्रियता में इन्फारमेशन टेक्नालाजी से जुड़े सक्रिय कार्यकर्ताओं की भी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए। बदलते दौर में उम्र लगा चुके साथियों को सलाहकार के रूप में आकर, नए नौजवानों को आगे लाकर जिम्मेवारी सौंप देना आवश्यक है, वरना तेजी से बदलते सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिदृश्य में आन्दोलन तालमेल नहीं बैठा पायेगा।
नए वर्ष 2013 में, तर्कशील आन्दोलन से जुड़े बुदिजीवियों के विचार मथंन की अभिलाषा के साथ, इसकी उतरोतर प्रगति की इच्छा से तर्कशील (विज्ञान-ज्योति) अपनी भूमिका निभाने के संकल्प को दोहराती है। संघर्षमयी प्रेरक गीत की पंक्तियों के साथ-
मशालें जला कर चलना कि, जब तक रात बाकी है।
सम्भल कर हर कदम रखना, जब तक रात बाकी है।।